हम कभी एक जैसे नही रह सकते और ना ही हमारे हालत हमेशा एक रहते है...वक़्त के साथ सब कुछ धीरे-धीरे बदलने लगता है और हमारा जीवन वक़्त के अनेक रंगो वाले शिलाओ पर चलने लगता है.... जिसमे कभी खुशियाँ हमारे नसीब मे आती है तो कभी बेशुमार दर्द... कभी यार, दोस्त मिलते,बनते है तो कभी बिछड़ते है... परिवर्तन होता है, क्यूंकि ये समय कि प्रवत्ति है और इस विश्व मे सारा खेल इसी परिवर्तन का ही तो है... .मैं ज़िंदगी के इस परिवर्तन का किसी भी तरह से विरोध नही कर रहा और ना ही मैं इसके खिलाफ हूँ...लेकिन जब धरती ,आकाश और आकाश ,धरती मे बदल जाए तो ये परिवर्तन बहुत बड़ा झटका देता है...क्यूंकी हम हमेशा होने वाले परिवर्तन का विरोध करते है और यही हम इंसानो की फ़ितरत है...हम यही चाहते है कि सब कुछ ...सारी चीज़े वैसी ही रहे जैसे हम चाहते है,लेकिन ऐसा नही होता और ना ही कभी ऐसा होगा. वक़्त के साथ साथ तो हमारे पुराणों के भगवान तक बदल गये फिर हम चीज ही क्या है....
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"Bhu कहा है बे... घर से नही आया अभी तक..."कॉलेज के लिए तैयार होते हुए मैने अरुण से पुछा
आज हमे थर्ड सेमेस्टर मे कॉलेज जाते हुए एक हफ्ते से भी ज़्यादा समय हो गया था लेकिन bhu अभी तक घर से नही लौटा था....
"तुझे नही पता क्या...?"
"क्या नही पता और तू मुँह तो ऐसे फाड़ रहा है जैसे हमारे जंगल का राजा भोपु स्वर्ग सिधार गया हो..."
"ऐसा ही कुछ समझ..."
"अबे सीधी तरह बोल..."मैने सीरीयस होते हुए कहा...
"वो अब इस कॉलेज मे नही पढ़ेगा...उसने अपना ट्रान्स्फर करा लिया है..."
"क्या.... क्यों... क्या बोला तूने की उसने अपना कॉलेज बदल लिया है...? अबे ये स्कूल नही है जो जब मन आए ट्रान्स्फर करा लिया..."
"एक ही यूनिवर्सिटी के govt. To govt. कॉलेज मे आफ्टर वन ईयर ये सुविधा है...."और फिर उसने bhu के न्यू कॉलेज का नाम,पता भी बता...
"ओह ! मैं ये नही जानता था...लेकिन उसने ऐसा क्यूँ किया...?? सब ठीक-ठाक तो चल रहा था ."
"दुनिया मे बहुत तरह के लोग होते है अरमान सर..."
अरुण सच कह रहा था, मैं अभी तक नही समझ पा रहा था कि भूपेश ने ऐसा क्यूँ किया...? क्यूंकी जिस कॉलेज मे वो अब था वो कॉलेज हमारे कॉलेज से अच्छा नही था एक्सेप्ट बिल्डिंग और ना ही उसका वहाँ होमटाउन था,जो घर के मोह मे वो यहाँ से वहाँ चला गया हो...खैर बात जो भी हो ये सच था कि अब bhu कभी हमारे साथ क्लास मे नही बैठेगा.....एक और चीज़ जो बदली वो ये कि नवीन अब हम दोनो से अलग हो गया था...उसकी ब्रांच माइनिंग थी इसलिए सेकेंड एअर से उसकी क्लास अलग हो गयी थी....मुझे ज़्यादा तो नही.. पर दोनों के अलग होने से थोड़ा बुरा जरूर लगा ,क्यूंकी मैने उसके साथ एक साल का वक़्त एक ही क्लास मे गुज़ारा था और अब वो हमारे साथ नही था....एक इंजीनियरिंग स्टूडेंट कि लाइफ मे सेकेंड एअर मे बहुत लंबे-चौड़े परिवर्तन होते है ,जैसे कि टीचर्स का चेंज हो जाना....एक तरफ जहाँ हमे "आप फिज़िक्स के खिलाफ नही जा सकते..."डाइलॉग के जन्मदाता कल्लू कुर्रे से इस साल मुक्ति मिली वही दंमो रानी हमे M-3 पढ़ाने के लिए अब भी हमारे साथ थी...एक और चीज़ जो बदली वो ये की इस बार हमारे टीचर्स मे सिर्फ़ 1 मेल था बाकी सब फीमेल थी....लेकिन माल एक भी नही... So sad.
शुरू-शुरू के दिनो मे रिसेस के वक़्त नवीन हमारी क्लास मे आता और हम तीनो बकचोदि करते हुए अपने पिछले दिनो को याद करते,....लेकिन जैसे-जैसे वक़्त बीता नवीन ने हमारी क्लास मे आना कम कर दिया, उसने अपने ब्रांच मे ही कई नये दोस्त बना लिए थे और अब वो उन्ही के साथ घूमता था...उसको देखकर हम दोनो ने भी डिसाइड किया की अब हमे भी कुछ धमाल मचाना चाहिए, अभी तो तीन साल बाकी है...इसे हमलोग ऐसे ही नही गवाँ सकते...और वो सेमेस्टर ऐसा था,जिसने मुझे दोस्तो के साथ मस्ती करने का असली मतलब समझाया....या फिर कहे की मैं ,मेरे ज़िंदगी के सबसे अच्छे लौन्डो से मिलने वाला था...जिनमे से कुछ ऐसे थे जो हमारे क्लास के टॉपर तक को क्लास के दौरान पानी पिला देते थे तो कुछ इतने रिलैक्स लड़के थे कि एग्जाम्स मे पासिंग मार्क्स के आन्सर लिख कर एग्जाम्स हॉल से सीधे बाहर आ जाते थे,भले ही उनसे आगे के सारे क्वेस्चन्स के आन्सर आते हो....उनमे से एक शायर भी था..जो अक्सर वेलकम और फेयरवेल की पार्टी मे हमारा नाम एड करके अपनी पोयम्स बनाने लगा tha....
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एक तरफ जहाँ मैं कई नये दोस्त बनाने वाला था वही कई पुराने दोस्तो से मेरा साथ छूटने भी वाला था,जिसका मुझे अंदाज़ा तक नही था.... नये लोगो कि चका -चौध मे पुराने लोगो को कौन याद करता है... ये उस समय समझ नहीं आता..वो तो जब वक़्त बीत जाता है, तब समझ आता है कि क्या गँवाया है और क्या पाया है...
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"कुल मिलाकर आप सबको 5 प्रेक्टीकल कॉपी बनानी है वर्कशॉप की...5 से कम प्रेक्टिकल कॉपी जो भी जमा करेगा उसके 5 नंबर per कॉपी के हिसाब से काटेंगे.. Is that clear, students......"
"यस सर..."आर्मी के जवान की तरह हमने एक साथ जवाब दिया...
"खा-पी के नही आए हो क्या...ज़ोर से बोलो.."
"यस सर..."वर्कशॉप मे एक बार फिर हमारी आवाज़ गूँजी....
"ग्रूप बाँट दे रहा हूँ, 3-3 स्टूडेंट्स का ग्रूप होगा और सब जाकर अपना जॉब कंप्लीट करेंगे...."
"यस सर..."हम एक बार फिर चीखे
"और एक बात ,कोई भी मेरे पास अपना ग्रूप चेंज करवाने नही आएगा...चाहे वो लड़का हो या लड़की..."
"यस सर..."इस बार भी मैं चीखा,लेकिन सारे लौन्डे अबकी बार शांत रहे और पता नही सबको मेरी उस "यस सर"वाली आवाज़ मे क्या कॉमेडी दिखी की सभी ज़ोर-ज़ोर से हँसने लगे...वो सिबिन कुछ ज़्यादा ही हँस रही थी...
"ज़्यादा मत हँस,वरना थोबड़ा निकल कर सामने वाले टेबल पर गिर जाएगा..."उसे मैने धीरे से कहा"साली कुतिया... छिनाल "
"और एक बात....सबको एक-एक डाइयग्रॅम एक दम करेक्ट डाइमेन्षन मे बनाना होगा...ना एक सेंटीमीटर छोटा और ना ही एक सेंटीमीटर बड़ा...ना एक cm लंबा और ना ही एक cm चौड़ा...ईज़ दैट क्लियर..."
"यस सर..."इस बार मुझे छोड़ कर सबने नारा लगाया...
"और शुरुआत तुमसे होगी...क्या नाम है तुम्हारा..."
"कौन मै... सर...?? मै...?? मेरा नाम अरमान..."
"क्या.."
"अरमान..."मैने आवाज़ उची करके कहा...
"तुम अपना नाम सही से नही बता पा रहे ,देश की सेवा क्या करोगे..."
"ये तो हमारा तकिया कलाम था..."मैने खुद से कहा और फिर ज़ोर से आर्मी वाली स्टाइल मे बोला...
"Name- Arman Suryavanshi, Roll No. 11, Mechanical second year...Sirrrr"
"अभी तुम किस बटालियन मे हो..."जोश मे आते हुए उन्होने पुछा..लेकिन फिर अपनी ग़लती का अहसास होने पर दोबारा कहा"आइ मीन ,तुम इस वक़्त किस शॉप पर हो...?"
"टर्निंग शॉप पर...सर.."
"वेरी गुड, तुम जाओ और दुश्मनो को अंदर मत घुसने देना..."
"हााईयईईईन्न्णणन्...."मैं कंफ्यूज हो गया
"आइ मीन , अपने जॉब पर एक भी ग़लती मत करना..."
टर्निंग शॉप का हेड मुझे उस दिन बहुत चूतिया लगा...साला खुद को आर्मी का लेफ्टीनेंट समझ रहा था उसकी कहानी मुझे बाद मे मालूम चली...हुआ ये था कि हमारे टर्निंग शॉप का हेड बहुत बड़ा देशभक्त था...और ये इन्फर्मेशन मुझे मेरे ही हॉस्टल एक लड़के ने दी थी...उस वक़्त मैं ये नही जानता था कि ये इन्फर्मेशन देने वाला मेरा दोस्त सौरभ मेरा खास दोस्त बनेगा....लेकिन ये हुआ पूरे इतमीनान के साथ हुआ...
"अब क्या हुआ यार तुझे..."
"तुमने कहा था आज बताओगे...तू तुमने क्या सोचा..."
"किस बारे मे..."मैं जानता था कि निशा किस बारे मे पुछ रही है,लेकिन फिर भी मैने अंजान बनते हुए पुछा...और उसने तुरंत कॉल डिसकनेक्ट कर दी,लेकिन थोड़ी देर बाद उसने फिर कॉल किया...
"अरमान, अब मेरे मॉम -डैड मुझपर नज़र रखने लगे है...वो बोलते है की अब मैं घूमना बंद कर दूं..."
"तो सही तो बोल रहे है...तुम्हारी शादी को सिर्फ़ दो हफ्ते बाकी है, इसलिए ज़्यादा मत घूमो ,काली हो जाओगी..."
"तुम्हे मज़ाक सूझ रहा है..."
"ना..ये तो मैं दिल से बोल रहा हूँ..."
"मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ,लेकिन मेरे अकेले घर से निकलने मे पाबंदी लगा रखी है...कहते है,जहाँ भी जाओ तो ड्राइवर के साथ जाओ... खुद अकेले नहीं "
"सही है...''
"क्या सही है..."
"कुछ नही ,वो मैं अपने दोस्त से बात कर रहा था...हां बोलो क्या बोल रही थी..."
"यही कि अब मैं घर से अकेली नही निकल सकती..."
"एक मिनट ..."अपने दिमाग़ को टटोलते हुए मैं कोई आइडिया ढूँढने लगा"एक काम करो निशा..."
"कैसा काम, एक तो मैं पहले से ही परेशान हूँ उपर से तुम्हारा काम भी करूँ...क्या तुम्हे नही मालूम कि मेरे मॉम -डैड मुझे कही भी अकेले जाने नही देते,इसपर मैं तुम्हारा काम कैसे करूँगी...और वैसे भी अपना काम खुद करना चाहिए...."
"पहले मेरी बात तो सुन ले बे ..."निशा को बीच मे रोक कर मैं बोला"कल एक मॉल मे हम गये थे...याद है..."
"हां..."
"ड्राइवर के साथ वही पहुचो और जब ड्राइवर कार पार्क करने जाएगा तो तुम कार से निकलकर माल के अंदर आ जाना,मैं तुम्हे उधर ही मिलूँगा..."
"ओके..."
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निशा से बात करने के बाद मैने वरुण से उसके कार की चाबी माँगी तो वो बोलने लगा कि उसे आज उसकी वाली की फेमिली के पास जाना है...
"उस लौंडिया को मैने कल माल मे दो लड़को के साथ देखा था...दूर ही रह तू उससे"मैने वरुण की कार लेने के लिए अपना जाल फेका...
"क्या बोल रहा है यार..."वरुण एक दम से शॉक्ड होकर बिस्तर पर सीधे बैठ गया"वो तो बोल रही थी कि उसकी लाइफ मे मेरे सिवा और कोई लड़का नही है..."
"अबे झूठ बोल रही है वो...मैने कल माल मे उसे दूसरे लड़को के साथ देखा था.... मस्त एक ही स्लाइस से पिज्जा खा रहे थे दोनों..और फिर एक ही स्ट्रा से cold ड्रिंक भी पिया "
"सच..."
"तेरी कसम..."
"भाड़ मे गयी साली, मुझे चूतिया बनाने चली थी...मैं तो आज उसे नेकलेस गिफ्ट करने वाला था...अच्छा हुआ जो तूने उसकी असलियत बता दी...वरना मैं तो खामख़ाँ पप्पू बन जाता"आँखो मे अँगारे भरकर वरुण उठा और मुझे कार की चाभी देकर थैंक्स भी बोला....
"अब थैंक्स मत बोल यार "जब मेरे द्वारा फेके गये जाल मे चाभी फस गयी तो उस चाभी को अपनी ओर सरकाते हुए मैने कहा"एक और बात ,साली का फोन आए तो बिल्कुल भी रिसीव मत करना.... वो तो यही बोलेगी कि... मैं झूठ बोल रहा हूँ, मॉल तो मैं गई ही नहीं... लेकिन तू मत पिघलना... अरमान का दोस्त है तू... ओके...?? मैं चलता हूँ अब ..."
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वरुण की कार लेकर मैं मॉल की तरफ निकल पड़ा ,मॉल पहुचने मे मुझे मुश्किल से आधा घंटा ही लगा होगा लेकिन निशा का इंतज़ार करते हुए मुझे एक घंटे से भी ज़्यादा समय हो गया था....
"एक कप कॉफी देना..."ऑर्डर देते हुए मैने एक और बार निशा का नंबर डाइयल किया और पिछले कई बार की तरह इस बार भी उसका नंबर स्विच ऑफ बता रहा था...
"इसने अपना मोबाइल क्यूँ बंद करके रखा है..."
इसके बाद आधा घंटा और बीता लेकिन ना तो निशा आई और ना ही उसका नंबर ऑन हुआ...जिस टेबल पर मैं बैठा था उसके सामने वाले टेबल पर कुछ लड़के बैठ कर किसी मूवी के बारे मे बात कर रहे थे...
"महीनो हो गये कोई मूवी देखे हुए...आज देख लेता हूँ..."
मैने वहाँ का बिल पे किया और सिनेमाहोल की तरफ बढ़ा...अब पहले जैसा मैं नही रहा था,जो किसी मूवी के रिलीस होने के पहले ही उसके बारे मे डीटेल मालूम कर लूँ, मैने बाहर लगे मूवी के पोस्टर देखे और फिर टिकेट काउंटर पर जाकर उसे मूवी का नेम बताया....
"इस शो की सारी टिकट बिक चुकी है.. सर ."
"तो किसी और मूवी का ही टिकेट दे दे..."
"किस फिल्म का टिकट सर..."
जहाँ पर मूवी के पोस्टर्स लगे हुए थे उसी के बगल मे टिकेट काउंटर था, मैं एक बार फिर वापस आकर पोस्टर्स को देखने लगा और उसके बाद जैसे ही मुड़ा तो नीचे वाले फ्लोर पर मुझे निशा दिखाई दी लेकिन साथ मे उसके पेरेंट्स भी थे...
"कमाल है मैं इधर डेढ़ घंटे से कॉफी पी-पी कर उसका इंतज़ार कर रहा हूँ और ये इधर अपनी शादी के लिए फैमिली शॉपिंग कर रही है...अभी बताता हूँ इस डायन को..."
Raghuveer Sharma
27-Nov-2021 01:34 PM
waah waah achanak se manmit ka dikhai dena bahut accha anubhv hota hai😍😍
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